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आत्मनिवेदन

बृहत्त्रयी के अन्तर्गत समाविष्ट सुश्रुतसंहिता आयुर्वेदीय साहित्य का महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ है। काशिराज दिवोदास धन्वन्तरि द्वारा उपदिष्ट एवं उनके शिष्य विश्वामित्रपुत्र सुश्रुत द्वारा प्रणीत ग्रन्थ आयुर्वेदजगत में सुश्रुतसंहिता के नाम से विख्यात हुआ। कालक्रमशः ५वीं शताब्दी में नागार्जुन द्वारा इस संहिता में उत्तरतन्त्र जोड़ने के साथ-साथ सम्पूर्ण संहिता का प्रतिसंस्कार भी किया गया। तदुपरान्त १०वीं सदी में तीसटपुत्र चन्द्रट ने जेज्जट की व्याख्या के आधार पर इसकी पाठशुद्धि की, उनका यह योगदान भी प्रतिसंस्कार जैसा ही था। आयुर्वेदवाङ्मय में इस ग्रन्थ को शल्यचिकित्सा के सर्वश्रेष्ठ ग्रन्थ के रूप में जाना जाता है। यद्यपि वर्तमानकाल में उपलब्ध सुश्रुतसंहिता में अष्टाङ्ग आयुर्वेद का पर्याप्त वर्णन मिलता है तथापि शल्यचिकित्सा को आधार मानकर निर्मित होने के कारण इसे शल्यचिकित्सा के प्राचीनतम एवं आकर ग्रन्थ के रूप में मान्यता प्राप्त हुई है। आधुनिक शल्यचिकित्सक भी सुश्रुत को शल्यचिकित्सा का जनक मानते हैं।

सुश्रुतसंहिता मूलतः ५ स्थानों और १२० अध्यायों (सूत्रस्थान-४६, निदानस्थान-१६, शारीरस्थान-१०, चिकित्सास्थान-४० एवं कल्पस्थान-८ अध्यायों) में विभाजित है। नागार्जुनकृत उत्तरतन्त्र के ६६ अध्यायों को भी इसमें जोड़ देने पर वर्तमान में इस संहिता में कुल १८६ अध्याय मिलते हैं।

इस संहिता के सूत्रस्थान में आयुर्वेद के मौलिक सिद्धान्त जैसे दोष-धातु-मल, ऋतुचर्या, हिताहित, अरिष्ट, रस-गुण-वीर्य-विपाक, आहार, औषध-द्रव्य, वमन-विरेचन आदि के साथ-साथ शल्यचिकित्सा के मूलभूत सिद्धान्तों यथा अष्टविध शल्यकर्म, यन्त्र, शस्त्रानुशस्त्र, क्षारकर्म, अग्निकर्म, जलौकावचारण, कर्णव्यध, कर्णबन्ध, आम और पक्व व्रण, व्रणालेपन, व्रणबन्ध, षट् क्रियाकाल, शल्यापनयन आदि का भी अतुलनीय वर्णन मिलता है। तदुपरान्त निदानस्थान में शल्यशास्त्र के कतिपय प्रमुख रोगों का निदानपञ्चकात्मक वर्णन एवं शारीरस्थान में दार्शनिक विषयों, कौमारभृत्य के मौलिक सिद्धान्तों, मानव शरीरक्रिया और शरीररचना का वर्णन है। इसी स्थान में मर्मशारीर की अवस्थिति सुश्रुत के शारीर विषयक ज्ञान का उत्कृष्टतम स्वरूप है, आधुनिक चिकित्सा विज्ञान के लिए भी यह कुतुहल का विषय है। अधुना इस विषय पर पुनः अनुसन्धान अपेक्षित है। आयुर्वेदीय साहित्य में शरीररचना का जितना विशद विवेचन सुश्रुतसंहिता में मिलता है उतना किसी अन्य ग्रन्थ में नहीं है। इसी कारण आयुर्वेद वाङ्मय में शारीरे सुश्रुतः श्रेष्ठः उक्ति प्रसिद्ध है।

चिकित्सास्थान में शल्यतन्त्रोक्त रोगों की चिकित्सा के साथ-साथ, वाजीकरण, रसायन एवं पञ्चकर्म आदि चिकित्सा विधाओं का वर्णन तथा कल्पस्थान में अगदतन्त्र का विस्तृत वर्णन है। उत्तरतन्त्र में शालाक्यतन्त्र, कौमारभृत्य, कायचिकित्सा, भूतविद्या, स्वस्थवृत्त, तन्त्रयुक्ति, रस और दोष विषयक मौलिक सिद्धान्तों का वर्णन है। संक्षेप में सुश्रुतसंहिता में न केवल शल्यतन्त्र अपितु आयुर्वेद के अनेक महत्त्वपूर्ण सिद्धान्तों का विशद विश्लेषण किया गया है जिसके परिणामस्वरूप सुश्रुतसंहिता को बृहत्त्रयी में समादृत स्थान प्राप्त है।

सुश्रुतसंहिता शल्यपरम्परा का आधारभूत ग्रन्थ है, जिसमें शल्यचिकित्सा की विधाओं के निर्देश के साथ-साथ प्रत्यक्ष कर्माभ्यास को भी पर्याप्त महत्त्व दिया गया है। किन्तु प्रत्यक्ष कर्माभ्यास शास्त्र के सम्यक् अध्ययनोपरान्त ही सम्भव है। संहिता के गूढार्थ को समझे बिना प्रत्यक्ष कर्माभ्यास में सम्यक् गति होना सम्भव नहीं है तथा बिना कर्माभ्यास के शल्यचिकित्सा में सिद्धि की कल्पना व्यर्थ है। अस्तु संहिता के गूढ एवं अस्फुटित विषयों के प्रकाशनार्थ परवर्ती आचार्यों द्वारा इस संहिता पर अनेक व्याख्याओं का प्रणयन किया गया। अधुना उनमें से कतिपय व्याख्याएँ ही उपलब्ध हो पाती है। वर्तमान में सुश्रुतसंहिता पर डल्हणविरचित निबन्धसङ्ग्रह, गयदासविरचित न्यायचन्द्रिका, चक्रपाणिदत्त विरचित भानुमती एवं हाराणचन्द्र विरचित सुश्रुतार्थसन्दीपन व्याख्याएँ उपलब्ध हैं। इनमें से न्यायचन्द्रिका केवल निदानस्थान पर और भानुमती केवल सूत्रस्थान पर उपलब्ध है जबकि निबन्धसङ्ग्रह और सुश्रुतार्थसन्दीपन व्याख्याएँ पूर्णतः प्रकाशित हैं। निबन्धसङ्ग्रह सुश्रुतसंहिता की उपलब्ध व्याख्याओं में से पठन-पाठन में सर्वाधिक प्रचलित एवं परमोपयोगी व्याख्या है। इस व्याख्या की महत्ता न केवल सम्पूर्ण उपलब्ध होने के कारण है अपितु विषयों का सरल एवं सुबोध भाषा में स्पष्टीकरण भी इसके महत्त्व ख्यापन का एक हेतु है। इस व्याख्या के बारे में विद्वज्जनों की मान्यता यह है कि संस्कृत का सामान्य ज्ञान रखने वाला स्नातक भी इसके सहित सुश्रुतसंहिता का अध्ययन करके आयुर्वेद के गूढ रहस्यों को आसानी से समझ लेता है। इस व्याख्या में द्रव्यों के अप्रचलित नामों पर टीका करते हुए प्रचलित पर्यायों का उल्लेख करके सन्दिग्ध द्रव्यों की समस्या का कुछ हद तक समाधान किया गया है।

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